योग के लक्ष्य एवं उद्देश्य Aim and Objectives in yoga

Aim and Objectives of Yoga

योग के लक्ष्य एवं उद्देश्यों का सम्पूर्ण विवरण

योग के लक्ष्य एवं उद्देश्य Aim and Objectives in yoga

योग का लक्ष्य जीवन की प्रसुप्त, अविज्ञात व अजागृत शक्तियों का जागरण कर व्यक्तित्त्व को परम शिखर तक पहुँचाने की अपूर्व क्षमता का विकास करना है। योग प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियों, तत्त्ववेत्ताओं द्वारा प्रतिपादित अनमोल ज्ञान-विज्ञान से युक्त एक विशिष्ट पद्धति है। इसमें मनुष्य मात्र का समग्र उत्थान, विकास एवं उत्कर्ष के लिए अनेकाविध उपाय-प्रयोग सन्नियोजित है। अतः इसे मोक्ष का साधन भी कहते हैं। वस्तुतः योग एक जीवन पद्धति है, जीवन दर्शन है। यह जीवन जीने की सर्वश्रेष्ठ कला है।

मोक्ष की प्राप्ति मानव जीवन का चरम लक्ष्य है। हमारे जीवन का प्रत्येक आयाम योग से जुड़ा हुआ है, चाहे वह शारीरिक हो, सामाजिक हो अथवा नैतिक हो, आध्यात्मिक उत्कर्ष की प्राप्ति तो योग का चरम लक्ष्य है। आरोग्यता एवं मोक्ष इन दोनों का ही आधार योग है।

विभिन्न ग्रंथों में योग का उद्देश्य

योग मनुष्य को सभी प्रकार के आवरणों और विक्षेपों से सदा के लिए मुक्त करता हुआ ऐसा विशुद्ध अन्तःकरण वाला बना देता है, कि परमात्मा से उसका अभिन्न सम्बन्ध अपने आप स्थापित हो जाता है।

Geeta Updesh
1. श्रीमद्भागवत गीता  में –

गीता (5/7)में भगवान श्रीकृष्ण ने योग साधना को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करते हुए कहा है।

योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।

सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्तिन लिप्यते।।

अर्थात् योग से युक्त, विशुद्ध अन्तःकरण वाला, विजितात्मा, शरीरजयी, जितेन्द्रिय और सब भूतों में अपनी आत्मा को देखने वाला यथार्थ ज्ञानी हो जाता है। इस प्रकार स्थित हुआ पुरूप लोक संग्रह हेतु कर्म करता हुआ भी किसी कर्म से लिप्त नहीं होता अर्थात् कर्मों से नहीं बँधता।  

2. गोरक्ष संहिता में –

द्विजसेवित शाखस्य श्रुति कस्पतरोः फलम्।

शमन भवतापस्य  योगं  भजत  सत्तमाः।।

अर्थात् वेद रूपी कल्पवृक्ष के फल योगशास्त्र है। इस योगशास्त्र के सेवन से संसार के तीन प्रकार के ताप (आधिदैविक, आधिभौतिक और आध्यात्मिक) का शमन होता है।

3. पातंजल योगसूत्र में –

महर्षि पतंजलि कृत अष्टांगयोग का उद्देश्य शरीर शुद्धि के साथ-साथ चरित्र की शुद्धि का उपाय बताया गया है।

योगांगनुष्ठानादशुद्धिक्षये ज्ञानदीप्तिराविवकाख्यातेः।।  पातंजलयोग सूत्र 2/28

योग के अंग का अनुष्ठान करने से अशुद्धि का नाश होने पर ज्ञान का प्रकाश, विवेकख्यातिपर्यन्त हो जाता है।

               यम-नियम हमारे चिन्तन, चरित्र और व्यवहार को शुद्ध सात्विक व निर्मल बनाते हैं।

चारित्रिक स्वास्थ्य यम-नियम का मूल उद्देश्य है।

               शारीरिक स्वास्थ्य आसन-प्राणायाम का उद्देश्य है।

               प्रत्याहार का उद्देश्य जीवन में संयम है। संयमित जीवन शैली द्वारा प्रत्याहार किया जा सकता है।

               धारणा एवं ध्यान का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य की प्राप्ति है। धारणा चित्त के बिखराव को रोक कर एक स्थान विशेष पर लगाना है, और अपने-अपने नियत लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना ध्यान का उद्देश्य है।

               समाधि ध्यान की उत्कृष्ट अवस्था है, जिसके द्वारा आत्म साक्षात्कार प्राप्त किया जा सकता है। समाधि का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति है, जो कि मनुष्य मात्र का परम लक्ष्य है।

               महर्षि पतंजलि ने क्रियायोग का उद्देश्य कर्म, ज्ञान एवं भक्तियोग की प्राप्ति बताया है। साथ ही इसके द्वारा पंच क्लेशों का नाश भी बतलाया गया है।

योग के महत्त्व

योग के महत्त्व को निम्न बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है।

जीवन लक्ष्य का बोध –

योग हमें जीवन लक्ष्य का बोध कराता है | मैं कौन हूँ , कहाँ से आया  हूँ , क्यों आया हूँ , मेरे आने का उद्देश्य क्या है | इन सभी यक्ष प्रश्नों का उत्तर योग से प्राप्त होता है |

लक्ष्य प्राप्ति के उपाय बताना –

जीवन लक्ष्य को व्यक्ति जब जान जाता है , तब उन्हें इसे प्राप्त करने का उपाय भी बताता है |

जीवन का सर्वांगीण विकास करना –

योग जीवन का सर्वांगपूर्ण विकास करता है , जीवन के सभी पक्षों को उजागर करता है |

सुप्त शक्तियों का जागरण –

योग जीवन के सुप्त शक्तियों को जागृत करता है , अष्ट सिद्धियों को प्रदान करता है |

दुःखों से निवृत्ति –

योग के द्वारा संसार के त्रितापों – आधि दैविक, आधि भौतिक  एवम् आध्यात्मिक तापों से मुक्ति प्रदान करता है |

amrit lal gurvendra: